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#561 |
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#562 |
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#563 |
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فالجرح وإن شفي فإن أثره يبقى ! |
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#564 |
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#565 |
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#566 |
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#567 |
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أكتم غضبي ! |
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#568 |
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#569 |
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#570 |
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لأنك النفس بيّا وبدونك ما أعيش |
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